जीवाश्म D.N.A के खोजकर्ता और नोबेल विजेता स्वांते पाबो -
स्वांते पाबो का जन्म कब और कहाँ हुआ-
स्वांते पाबो एक महान शारीरिक विज्ञान में औषधी विभाग के वैज्ञानिक हैं। स्वांते पाबो जी का जन्म 20 अप्रैल 1955 में स्टॉकहोम स्वीडन में हुआ थ। स्वांते जी की माता का नाम सुने वर्गस्कॉटम , व पिता जी का नाम केरिन पाबो हे। और यह एस्टोनियाई स्वीडन के रहने वाले हे।
. 1986 में उप्साला युनिवेर्सिटी से पढ़ाई की और वही से उन्होंने PHD भी की।
. स्वांते पाबो जी का विवाह सन्न 2008 में लिंडा विजिलेंट नाम की औरत से हुआ।
स्वांते पाबो जी और उनके समूह के द्वारा की गई मुख्य खोज-
1. फेल्डहोपर गुफा -
जर्मनी में निएंडर घाटी में स्थित फेल्डहोपर गुफा में निएडरंथल वर्ग का एक जीवाश्म खोजा गया। स्वांते जी के समूह के द्वारा डीएनए निकलने के लिए एक हड्डी का छोटा सा नमूना तैयार किया गया। यह तब संभव हुआ , जब पाबो जी के समूह को कुछ प्रमुख वैज्ञानिक चुनोतियो का सामना करना पड़ा। अवशेेषो की हड्डियों के नमूने जो कई हजार वर्षो से गुफा क आस पास पड़े हुए थे , जो प्रकर्तिक चुनोतियो क सम्पर्क में थे। और सूक्ष्म जीव विशेष रूप से कवक और वेक्टेरिया , ऐसे जीव "मलवे" पर बढ़ते हे। और इन रोगाणुओ में डीएनए भी होता हे, इससे यह पता चलता हे कि एक खोज करता कैसे जानता की ऐसी हड्डियों से निकला गया डीएनए अन्य जीवो के डीएनए से दूषित नहीं होता। साथ ही हड्डियों को खोजने वाले पुरातत्वविदों नए अनजाने में अपने स्वय के डीएनए से हड्डियों को दूषित किया। क्योकि लोग हर समय अपने शरीर की कोशिकाओं को बहाते रहते हे,जिनमे उनका डीएनए होता हे।
2.दूषित डीएनए -
"दूषित डीएनए " हड्डियो से निकले गए कुल डीएनए का एक छोटा अंश हे। हलाकि एक नमूने में डीएनए की मात्रा आमतौर पर इसके अनुकृम को निर्धारित करने के लिए बहुत काम आती हे। और इसे पीसीआर प्रकिर्या द्वारा पर्वाधित करते हे।
जब हड्डी से निकाले गए पर्वाधित डीएनए अणुओ के पुल का अनुक्रम निर्धारण के लिए विश्लेषण किया जाता हे। जो प्राप्त किये गए अधिकांश छोटे अनुक्रम वास्तव में कवक वेक्टेरिया या पुरातत्विदों के हे। जिन्होंने हड्डी खोजी थी न की हड्डी के प्राचीन डीएनए ,यह एक बड़ी चुनौती थी पाबो और उसके समूह के सामने जिसे उन्होंने पार किया।
दूषित डीएनए को सभालने के लिए किये गए बचाव और प्रावधान -
1 . प्रोग्शाला में हड्डियों को सभालते समय लोगो के लिए एक विशेष सूट बनवाने पड़े।
2 . प्रोग्शाला में विशेष कृत्रिम वायुदाब कक्ष बनाये गए जिनमे डीएनए निष्कर्ष और प्रावधान किया गया।
पाबो और उनके समूह को निम्न चुनोतियो का सामना करना पड़ा -
पाबो और उनके समूह के सामने अब बहुत चुनोतिया थी। क्योकि हड्डिया पर्यावरण के सम्पर्क में आ गई। और डीएनए का क्षरण हुआ, जिसमे भौतिक परिवर्तन और रासायनिक परिवर्तन दोनों शामिल थे। जिससे हड्डियों का विखंडन भी हुआ, जिन्हे क्राँस-लिकिंग और डॉमिनेशन के रूप में जाना जाता हे। जबकि निकाले गए प्राचीन डीएनए के विश्लेष्ण के लिए अनुउपुक्त थे। प्राचीन डीएनए का क्षरण गर्म नम वातावरण की तुला में धीमा होता हे।
पाबो और उनके समूह नए प्राचीन डीएनए का विश्लेष्ण करने की चुनोतियो को दूर करने के लिए दशको से अधिक समय तक कड़ी मेहनत की अब इस तरह के खोज में लगे सभी वैज्ञानिक पाबो और उनके समूह द्वारा सिद्ध की गई तकनीकों और उनके द्वारा तैयार किये गए प्रोटोकॉल का प्रयोग करते हे।
विदिन्जा गुफा में पाए गए कुछ नमूने और निएडरथल महिला के अणु -
पाबो और उनके समूह नें 2010 में पहले निएडरथल डीएनए अनुक्रम का निर्माण किया। हालांकि विदिन्जा गुफा, क्रोएसिया में पाए गए तीन व्यक्तियों से निर्धारित किया। 2014 में समूह नें लगभग 50000 साल पहले साइबेरिया में अल्ताई के पहाड़ो में एक एक गुफा में रहने वाली एक निएडरथल महिला का उच्च गुणवत्ता वाला पूर्ण डीएनए तैयार किया। निएडरथल के कुछ मनुष्य घनिष्ठ सम्बधियो के बिच अंतप्रजनन या शंभोग करते यह प्रथा दक्षिण भारत के कई जनसंख्या समूह में पाई जाती हे।
आधुनिक मनुष्य में निएडरथल डीएनए -
जब आधुनिक मानव अफ्रीका से बहार आए तो निएडरथल की एकमात्र होमोनीन प्रजाति थी, जिनसे वे मिले वहा एक और प्रजाति थी जिसका नाम डेनिसोवन था। और यह प्रजाति युरेसिया में घूमती साइबेरिया के डेनिसोवन गुफा में पाई गई छोटी हड्डिया के डीएनए विस्लेषण से पता चला कि जिन वयक्तियो की ये हड्डिया हे, वे अलग प्रजाति के हे। जिन्हे डेनिसोवन्स के नाम से जाना गया।
पाबो और उनके समूह की खोज में पता चला की, भारत में फेले 42 जनसख्याँ समूहों और विभिन्न संस्कृतियों और भाषाओ से सम्बंधित वयक्तियो का डीएनए विश्लेषण किया। और 2019 में परिमाण प्रकाशित किये। जब दोनों समूहों का अनुमान लगाया गया तो उससे पता चला की निएंडरथल ने विभिन्न भारतीय आबादी में 1.89 % - 2.49 % ला योगदान किया। जबकि डेनिसोवन्स ने 0.08 % - 0.40 % का योगदान दिया। और इसमें एक अच्छी बात यह हे की भारत में डेनिसोवन मिश्रण की सिमा निएंडरथल की तुला में कम हे। और जाती आबादी की तुलना में डेनिसोवन का मिश्रण का ओसत स्तर भारत की जनजातीय आबादी के बिच अधिक हे।
निएंडरथल और डेनिसोवन्स का विलुप्तीकरण-
आधुनिक मानव ने निएंडरथल और डेनिसोवन्स के साथ संकरण कियाऔर बच्चे पैदा किए, जिसकी वजह से ये जातीय विलुप्त हो गयी। इसका संभावित कारण यह हे की मनुष्यो और निएंडरथल या डेनिसोवन्स के बिच सघो के बच्चे मनुष्यो के साथ बने रहे। और हजारो वर्षो में होमोनीन प्रजातियों का आकर कम होने लगा और ये विलुप्त हो गयी।
Good
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